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ज़रा गिर के देख, तू भिड़ के देख
फिर ख़ाबों पे तू मिट के देख
ज़रा गिर के देख, तू भिड़ के देख
फिर ख़ाबों पे तू मिट के देख
मैदान भी होगा तेरा, तू हक़ से माँग
लगा मिट्टी माथे, लगा मिट्टी माथे, लगा मिट्टी माथे
और ले छलांग, और ले छलांग, और ले छलांग
और ले छलांग, और ले छलांग, और ले छलांग
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लिखी है जो हाथों पर वो बस लकीर है
लिखी है जो हाथों पर वो बस लकीर है
लिखनी आसमानों पर अपनी तक़दीर है
पूछा है उसने तुझ से, ज़ाया ना कर ये मौक़ा
छीन ले अपनी क़िस्मत, है किसने तुझ को रोका?
अपनी कमज़ोरियों की हर हद तू लाँघ
लगा मिट्टी माथे, लगा मिट्टी माथे, लगा मिट्टी माथे
और ले छलांग, और ले छलांग, और ले छलांग
और ले छलांग, और ले छलांग, और ले छलांग
माथे पे जो ये बल है, भय का गाढ़ा दलदल है
दलदल पे भागना है, हर तीर दाग़ना है
चीर दे अँधेरा, ऐसी दे बाँग
लगा मिट्टी माथे, लगा मिट्टी माथे, लगा मिट्टी माथे
और ले छलांग, और ले छलांग, और ले छलांग
और ले छलांग, और ले छलांग, और ले छलांग