O Sathi Mere - Sonu Nigam

O Sathi Mere

Sonu Nigam

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Lyric

ओ, साथी मेरे, हाथों में तेरे

हाथों की अब गिरह दे ऐसे कि टूटे ये कभी ना

ओ, साथी मेरे, हाथों में तेरे

हाथों की अब गिरह दे ऐसे कि टूटे ये कभी ना

चल ना कहीं सपनों के गाँव रे

छूटे ना फिर भी धरती से पाँव रे

आग और पानी से फिर लिख दें वो वादे सारे

साथ ही में रोएँ-हँसें, संग धूप-छाँव रे

आग और पानी से फिर लिख दें वो वादे सारे

साथ ही में रोएँ-हँसें, संग धूप-छाँव रे

ओ, साथी मेरे, हाथों में तेरे

हाथों की अब गिरह दे ऐसे कि टूटे ये कभी ना

हम जो बिख़रे कभी, तुम से जो हम उधड़े कहीं

बुन लेना फिर से हर धागा

हम तो अधूरे यहाँ, तुम भी मगर पूरे कहाँ?

कर ले अधूरेपन को हम आधा

जो अभी हमारा हो, मीठा हो या खारा हो

आओ ना, कर लें हम सब साझा

ओ, साथी मेरे, हाथों में तेरे

हाथों की अब गिरह दे ऐसे कि टूटे ये कभी ना

गहरी, अँधेरी या उजले सँवेरे हो

ये सारे तो हैं तुम से ही

आँखों में तेरी-मेरी उतरे इक साथ ही

दिन हो पतझड़ के, रातें या फूलों के

कितना भी हम रूठे, पर बात करे ये साथी

मौसम-मौसम यूँ ही साथ चलेंगे हम

लंबी इन राहों में आ, फूँक के पाँव से

रखेंगे पाँव पे तेरे मरहम

आओ, मिलें हम इस तरह, आए ना कभी विरह

"हम" से "मैं" ना हो रिहा

हमदम तुम ही हो, हर दम तुम ही हो

अब है यही दुआ

साथी रे, उम्र के सलवट भी साथ तहेंगे हम

गोद में ले के सर से चाँदी चुनेंगे हम

मरे ना मरे, साथी, पर साथ जिएँगे हम

ओ, साथी मेरे, हाथों में तेरे

हाथों की अब गिरह दे ऐसे कि टूटे ये कभी ना

चल ना कहीं सपनों के गाँव रे

छूटे ना फिर भी धरती से पाँव रे

आग और पानी से फिर लिख दें वो वादे सारे

साथ ही में रोएँ-हँसें, संग धूप-छाँव रे

आग और पानी से फिर लिख दें वो वादे सारे

साथ ही में रोएँ-हँसें, संग धूप-छाँव रे

ओ, साथी मेरे, हाथों में तेरे

हाथों की अब गिरह दे ऐसे कि टूटे ये कभी ना

- It's already the end -